Posts

हिंदी ग़ज़ल (अपने मन को शांति का सौगात दिया करो)

अपने मन को शांति का सौगात दिया करो अपने से भी आप थोड़ी बात किया करो अंधेरी रातें यहां की घोर डरावनी चलते हो तो एक साथी साथ लिया करो वो जो तेरी बात सुनकर लोग चले गए बिन बोले कह जो गए जज़्बात पिया करो आना जाना जिंदगी का खेल बहुत हुआ इस खेले के राज़ को ना कात किया करो आते हो हर रोज यूँ मिलके व चले गए फुर्सत में आ साथ मिलकर रात किया करो बातें जाके बेझिझक कह वत्स डरो नहीं इश्क ख़ुदा का नूर तुँ मुलाकात किया करो              --विजय इस्सर "वत्स"

गीत-दुर्गा काली आ सरस्वती

          ⬅️[{गीत}]➡️ झूमि ली गाबि ली नाचि ली ने कने ****************************** झूमि ली गाबि ली नाचि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने के जनै छै समय संग देतै ककर आई हम्मर छै काल्हि हेतै ओकर तेँ समय के मजा लूटि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने---- के कहै छैक की कान के मूनि ली मोन माने जेना चालि अप्पन चली प्रेम भावक वचन सूनि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने--- सुख दु:ख सँ सजल ई संसार छै जिनगीक धार के ई  दुनू पार छै विजय वत्स कहल गाबि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने---             —विजय इस्सर "वत्स"

गीत-झूमि ली नाचि ली

          ⬅️[{गीत}]➡️ झूमि ली गाबि ली नाचि ली ने कने ****************************** झूमि ली गाबि ली नाचि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने के जनै छै समय संग देतै ककर आई हम्मर छै काल्हि हेतै ओकर तेँ समय के मजा लूटि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने---- के कहै छैक की कान के मूनि ली मोन माने जेना चालि अप्पन चली प्रेम भावक वचन सूनि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने--- सुख दु:ख सँ सजल ई संसार छै जिनगीक धार के ई  दुनू पार छै विजय वत्स कहल गाबि ली ने कने काल्हि के की पता जीवि ली ने कने---             —विजय इस्सर "वत्स"

मैथिली गजल

[{मैथिली--गजल}]               °°°°°°°°°°°°°° भूख लागल हो जखन की नीक आ अधलाह की आगि पेटक शांत भेला बाद पूछब चाह की जानि नै की काल्हि हेतइ आइ भरि जी ली कने जीवनक जंजाल मे ताकब सुगम हम राह की की सही आ की गलत होनी छलै जे भेल से दोष नै ककरो समय बलवान के करताह की राग द्वेषक त्याग केने कर्म पथ पर जे चलथि सब बुझै छनि बूड़ि हुनका ओ कहू बजताह की संग मे क्यो होक आ नै वत्स अपनहि राह चल जीवनक छै चारि दिन भवसागरक छै थाह की              –विजय इस्सर "वत्स"                   ÷÷÷÷÷÷÷÷

रांगि देल नव सारी

    :रांगि देल नव सारी: 🚮🚮🚮🚮🚮🚮🚮 रांगि देल नव सारी सखी हे ढ़ीठ लंगर वनवारी….. तीतल देह लगै अछि कनकन मारल कसि पिचकारी। सखी हे ढ़ीठ लँगर वनवारी…..। ई सारी बड़ जतन सँ कीनल क'कय पैच उधारी ……. नटखट नंदकिशोर की बूझत करय चोरि बटमारी।सखी हे ढ़ीठ लँगर वनवारी….. कहबैनि जाए जसोदा माय सँ राखथु पूत सँभारी …… छीन खाह बरू दहि आ माखन बाट ने करय उघारी।सखी हे ढ़ीठ लँगर वनवारी…… प्रेमक रंग में रांगल जग के फूकि मुरलिया न्यारी…. सामर रूप अनूप अबीर सम आँखि पड़ल, हिय हारी।सखी हे  ढ़ीठ लँगर वनवारी…. 🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇         ( विजय इस्सर "वत्स")  

मैथिली गजल

                        [{गजल}]                         ******** माँगि रहल छी सौंसे दुनिया, गामे टोल सुधारि दियौ ने बूझल जगमग करबै जग केंँ, डीही दीया बारि दियौ ने  गाम-समाजक बात बहुत छै, कत्ते कहबै कत्ते सुनबै अपनहिं घर केँ स्वर्ग बनाके, भगवा झंडा गाड़ि दियौ ने भाषण काल फुराइ बहुत छै, कथनी करनी में बड अंतर मंचक नीचाँ आबि कने निज, जीवन में ऊतारि दियौ ने हम्मर बाजब तिख्खे लागत,सत्यक धाह सहब की संभव अप्पन तामस शांत करब तेंँ, हमरे घर ऊजारि दियौ ने देश हमर छल मिथिला शोभित,राज्यक लेल किए बेलल्ला सुनगय दीयौ सभके हृद मे एक्कहि संग पजारि दियौ ने *******************************************                   ✍️ विजय इस्सर "वत्स"                    """"""""""""""""""""""""

अँही भैरवी राग छी

 गीत-अहाँ मधुर भैरवी राग छी “”””””””””””””””””””””””””””””” गीत अहीं,..... संगीत अहीं... अहीं हम्मर जिनगीक साज छी अहाँ मधुर भैरवी राग छी…... अहाँ चम्पा और चमेली छी अहाँ फूलल साँझुक वेली छी साँच कही जीवन-बगिया के आहीं खिलल गुलाब छी…..। अहाँ मधुर भैरवी राग छी…… अहाँ चंद्रप्रभा सँ सिंचित छी गमगम चंदन तन लेपित छी अहाँ ललितकलाक अनुपम कृति अहाँ सुंदरता केर ताज छी….। अहाँ मधुर भैरवी राग छी…… अहाँ मृगनयनी, मृदु हासिनि छी अहाँ कोमलांगी, मधुभाषिनि छी अहाँ के पायब स्वर्गिक सुख सम अहाँ भाग्यवान केर भाग छी...। अहाँ मधुर भैरवी राग छी…… ************************** विजय इस्सर ‘वत्स’