रांगि देल नव सारी
:रांगि देल नव सारी:
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रांगि देल नव सारी सखी हे
ढ़ीठ लंगर वनवारी…..
तीतल देह लगै अछि कनकन
मारल कसि पिचकारी। सखी हे
ढ़ीठ लँगर वनवारी…..।
ई सारी बड़ जतन सँ कीनल
क'कय पैच उधारी …….
नटखट नंदकिशोर की बूझत
करय चोरि बटमारी।सखी हे
ढ़ीठ लँगर वनवारी…..
कहबैनि जाए जसोदा माय सँ
राखथु पूत सँभारी ……
छीन खाह बरू दहि आ माखन
बाट ने करय उघारी।सखी हे
ढ़ीठ लँगर वनवारी……
प्रेमक रंग में रांगल जग के
फूकि मुरलिया न्यारी….
सामर रूप अनूप अबीर सम
आँखि पड़ल, हिय हारी।सखी हे
ढ़ीठ लँगर वनवारी….
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( विजय इस्सर "वत्स")
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