मैथिली गजल
[{मैथिली--गजल}] °°°°°°°°°°°°°° भूख लागल हो जखन की नीक आ अधलाह की आगि पेटक शांत भेला बाद पूछब चाह की जानि नै की काल्हि हेतइ आइ भरि जी ली कने जीवनक जंजाल मे ताकब सुगम हम राह की की सही आ की गलत होनी छलै जे भेल से दोष नै ककरो समय बलवान के करताह की राग द्वेषक त्याग केने कर्म पथ पर जे चलथि सब बुझै छनि बूड़ि हुनका ओ कहू बजताह की संग मे क्यो होक आ नै वत्स अपनहि राह चल जीवनक छै चारि दिन भवसागरक छै थाह की –विजय इस्सर "वत्स" ÷÷÷÷÷÷÷÷