मैथिली गजल

[{मैथिली--गजल}]
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भूख लागल हो जखन की नीक आ अधलाह की
आगि पेटक शांत भेला बाद पूछब चाह की

जानि नै की काल्हि हेतइ आइ भरि जी ली कने
जीवनक जंजाल मे ताकब सुगम हम राह की

की सही आ की गलत होनी छलै जे भेल से
दोष नै ककरो समय बलवान के करताह की

राग द्वेषक त्याग केने कर्म पथ पर जे चलथि
सब बुझै छनि बूड़ि हुनका ओ कहू बजताह की

संग मे क्यो होक आ नै वत्स अपनहि राह चल
जीवनक छै चारि दिन भवसागरक छै थाह की

             –विजय इस्सर "वत्स"
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