गीत-दुर्गा काली आ सरस्वती

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झूमि ली गाबि ली नाचि ली ने कने

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झूमि ली गाबि ली नाचि ली ने कने

काल्हि के की पता जीवि ली ने कने


के जनै छै समय संग देतै ककर

आई हम्मर छै काल्हि हेतै ओकर

तेँ समय के मजा लूटि ली ने कने

काल्हि के की पता जीवि ली ने कने----


के कहै छैक की कान के मूनि ली

मोन माने जेना चालि अप्पन चली

प्रेम भावक वचन सूनि ली ने कने

काल्हि के की पता जीवि ली ने कने---


सुख दु:ख सँ सजल ई संसार छै

जिनगीक धार के ई  दुनू पार छै

विजय वत्स कहल गाबि ली ने कने

काल्हि के की पता जीवि ली ने कने---


            —विजय इस्सर "वत्स"



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