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रांगि देल नव सारी

    :रांगि देल नव सारी: 🚮🚮🚮🚮🚮🚮🚮 रांगि देल नव सारी सखी हे ढ़ीठ लंगर वनवारी….. तीतल देह लगै अछि कनकन मारल कसि पिचकारी। सखी हे ढ़ीठ लँगर वनवारी…..। ई सारी बड़ जतन सँ कीनल क'कय पैच उधारी ……. नटखट नंदकिशोर की बूझत करय चोरि बटमारी।सखी हे ढ़ीठ लँगर वनवारी….. कहबैनि जाए जसोदा माय सँ राखथु पूत सँभारी …… छीन खाह बरू दहि आ माखन बाट ने करय उघारी।सखी हे ढ़ीठ लँगर वनवारी…… प्रेमक रंग में रांगल जग के फूकि मुरलिया न्यारी…. सामर रूप अनूप अबीर सम आँखि पड़ल, हिय हारी।सखी हे  ढ़ीठ लँगर वनवारी…. 🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇         ( विजय इस्सर "वत्स")  

मैथिली गजल

                        [{गजल}]                         ******** माँगि रहल छी सौंसे दुनिया, गामे टोल सुधारि दियौ ने बूझल जगमग करबै जग केंँ, डीही दीया बारि दियौ ने  गाम-समाजक बात बहुत छै, कत्ते कहबै कत्ते सुनबै अपनहिं घर केँ स्वर्ग बनाके, भगवा झंडा गाड़ि दियौ ने भाषण काल फुराइ बहुत छै, कथनी करनी में बड अंतर मंचक नीचाँ आबि कने निज, जीवन में ऊतारि दियौ ने हम्मर बाजब तिख्खे लागत,सत्यक धाह सहब की संभव अप्पन तामस शांत करब तेंँ, हमरे घर ऊजारि दियौ ने देश हमर छल मिथिला शोभित,राज्यक लेल किए बेलल्ला सुनगय दीयौ सभके हृद मे एक्कहि संग पजारि दियौ ने *******************************************                   ✍️ विजय इस्सर "वत्स"                 ...

अँही भैरवी राग छी

 गीत-अहाँ मधुर भैरवी राग छी “”””””””””””””””””””””””””””””” गीत अहीं,..... संगीत अहीं... अहीं हम्मर जिनगीक साज छी अहाँ मधुर भैरवी राग छी…... अहाँ चम्पा और चमेली छी अहाँ फूलल साँझुक वेली छी साँच कही जीवन-बगिया के आहीं खिलल गुलाब छी…..। अहाँ मधुर भैरवी राग छी…… अहाँ चंद्रप्रभा सँ सिंचित छी गमगम चंदन तन लेपित छी अहाँ ललितकलाक अनुपम कृति अहाँ सुंदरता केर ताज छी….। अहाँ मधुर भैरवी राग छी…… अहाँ मृगनयनी, मृदु हासिनि छी अहाँ कोमलांगी, मधुभाषिनि छी अहाँ के पायब स्वर्गिक सुख सम अहाँ भाग्यवान केर भाग छी...। अहाँ मधुर भैरवी राग छी…… ************************** विजय इस्सर ‘वत्स’